नदिया की धार जब बहती है ,
जीवन का गीत सुनाती है,
एक नवीन माधुर्य संग मे अपने,
यह चंचला बहा कर लाती है||
सो जाती है पर्वत की ओत मे ,
चंदा से भी बतलाती है,
कभी मंद मंद सी बहती है,
कभी उत्कल आलाप सुनाती है ||
एक बूँद छिटक कर कभी जो,
नदिया से उड़ कर जाती है,
ले जाती है पवन पार उसे,
मेघों से फिर मिलवाती है ||
संग बादल जब बूँद मिले तो,
नदी रूप नया पा जाती है,
न्यौता पा कर धरा से फिर,
मेघों की बारातें आती है,
उमड़-घुमड़ जब बरसे मेघा,
उमड़-घुमड़ जब बरसे मेघा,
कृषक घर हरियाली छा जाती है ||
होता है हर खेत संपन्न,
धरा समृद्ध हो जाती है,
यह ही वह कहानी है ,
जो हर लहर हमें सुनती है,
नदिया की धार जब बहती है,
जीवन का गीत सुनती है ||