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Friday, April 16, 2010

पता न चला.......


वक़्त का बहना एक बात जायज़ है,
बह गया कब पता न चला,
हम तो अभी बस कल ही मिले थे,
कब वक़्त गुजरा पता न चला,
अभी तो बाकी थी पूरी रात हमारी,
कब हुआ सवेरा पता न चला,
क्यूँ यूं भागी थी घडी की सुइयां,
हमे तो उस सफ़र का पता न चला,
वो पहली बार एक गुमनाम हंसी थी,
वो तेरा मेरा साया बनना पता न चला,
कभी न दिल दुखाया है तेरा,
कभी जो दुखाया तो पता न चला,
मैं तो पागल था मानता हूँ यह भी,
तुझे क्यूँ इस वक़्त का पता न चला,
क्या तू भी बस खोया था मुझमे,
जो इस सफ़र का पता न चला.....

2 comments:

  1. simply heart touching,.,.,.,gr8 yaar,.,.

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  2. iss jungle hum khud ko sher samajhte rahe!
    bagal mei sawa sher tha, pataa na chalaa !!

    pure heart-poured lines with a touch of simplicity...thts wat ur poetry is !
    hail manish...keep writing dude

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