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Tuesday, March 23, 2010

एक वन मे थे दो यार बसे ...


एक बार की बात है
एक वन मे थे दो यार बसे ...

एक हमारे गधर्भ महाराज ,
और एक अश्वराज बसे ...

गधे हमारे महाराज के बड़े अनोखे ठाठ थे ...
पूँछ उनकी सोने की ... चांदी के सारे दांत थे ...
वँही हमारे अश्वराज ..सीधे साधे सचे थे ..
एक घर के आम से ,बड़े मेहनती बचे थे ...


अश्वराज के लिए जहाँ कॉलेज की फीस भारी थी ...
गधे हमारे "देंचुमल" की उस ही college मे दाखिले की तैयारी थी ...

मेहनत करके रात और दिन ,अश्वराज तीखे तीव्र चालाक बने ..
वँही हमारे गधे दोस्त के ,4 साल मे अंक कूल पचास बने ..

अब आखिरी दौड़ का वक़्त था . और गति का ही नाम था ..
ऐसी घूड-दौड़ मे फिर ,भला गधों का क्या काम था ...

कर भोचक्का सबको गधे ने ..
घुड-दौड़ मे नाम लिखावाया था ...
यह ही माया है JACK की बन्दे ...
घुड-दौड़ मे गधे को भी जितवाया था ...


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