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Wednesday, March 24, 2010

सूर्य सफ़र


स्वछन्द निस्पक्ष निरपेक्ष निर्भीक,
पुण्य सत्य की साहस सीख,
ऐसा ही कुछ कहता है,
सूरज पूरब से चढता है....

भीसन गर्जन, पावन बर्षण ,
तपन तपन, एक वाष्पित मन,
सर्द सुबहों को सहलाता है,
सूरज आसमान चढ जाता है...

शांत मृदुल, नवनीत नमन,
संग लालिमा, एक सुन्दर कांचन ,
एक योधा यूं सो जाता है,
सूरज पश्चिम मे खो जाता है ...

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